
कोरबा।
बरसात का मौसम वह वक्त होता है जब जंगलों में जीवन लौटता है। नई-नई पौधें अपने आप उगते हैं और करोड़ों की लागत से लगाए गए वृक्षारोपण को भी सहारा मिलता है। लेकिन कटघोरा वन मंडल की जडगा रेंज में तस्वीर इसके उलट है। यहां बाहरी राज्यों से आए चरवाहों के हजारों ऊँट, भेड़ और बकरियों ने खुलेआम डेरा डाल रखा है। नतीजा यह है कि जिन पौधों से हरियाली की उम्मीद थी, वे पशुओं के पेट में समा रहे हैं।
सूत्रों के हवाले से पता चला है कि जडगा रेंज में करीब 17–18 झुंड, औसतन 300-300 पशुओं के हैं। यानी लगभग 5 हज़ार से अधिक जानवर रोज़ाना जंगल में खुलेआम चराई कर रहे हैं। हजारों की संख्या में इमारती पौधे जड़ से नष्ट हो रहे हैं।
जिम्मेदारी टालते अधिकारी
इस मामले में हमने जब अधिकारियों को अवगत कराया तो एक दूसरे पर पल्ला झाड़ने लगा कि यह वह देखते हैं उनका एरिया है यह उनका एरिया है है कि वन विभाग के, रेंजर गजेन्द्र दोहरे और डिप्टी रेंजर नेपाल सिंह को जानकारी दी गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। ग्रामीण बताते हैं कि जब सवाल पूछा जाता है तो अधिकारी एक-दूसरे पर टाल देते हैं।
“रेंजर बोलते हैं कि यह हमारे क्षेत्र में नहीं है, कार्यवाही करने के बजाय अपना पल्ला झाड़ने में लगे रहते हैं डिप्टी रेंजर जिम्मेदार है। वहीं डिप्टी रेंजर कहते हैं कि यह अकेले मेरे बस की बात नहीं। आखिरकार सब पल्ला झाड़ने में लगे रहते हैं।”
कानून है स्पष्ट, पर कार्रवाई गायब
जानकारी के अनुसार भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26 के तहत आरक्षित वनों में अवैध चराई अपराध है। वन नियमों में पौधों को नुकसान पहुँचाने और जंगल की भूमि का दुरुपयोग करने पर जुर्माना और जेल दोनों का प्रावधान है। वन विभाग के अधिकारियों को पशुओं को जब्त करने और दोषियों पर मामला दर्ज करने का अधिकार है। लेकिन जडगा रेंज में न कोई पशु ज़ब्त हुए और न ही कोई मामला दर्ज हुआ।
मिलीभगत की बू
ग्रामीणों और सूत्रों का कहना है कि इन झुंडों को जंगल में सालों से जगह मिली हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि विभाग के कुछ अधिकारी मोटी रकम लेकर इन्हें संरक्षण दे रहे हैं। लगता है कि वन की रक्षा करने के बजाय ये अधिकारी स्वयं भक्षण में लगे हैं। “जहां वनरक्षक बनने चाहिए थे, वहां वन भक्षक खड़े हैं।”
सरकार की मंशा पर पानी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का “मां के नाम एक पेड़” अभियान और छत्तीसगढ़ सरकार की हरियाली और पर्यावरण संरक्षण की योजनाएँ जनता को प्रेरित करती हैं। सरकार की ममता साफ है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हरियाली सुरक्षित रहे। लेकिन जडगा रेंज में हो रही अवैध चराई और अधिकारियों की लापरवाही से इन योजनाओं पर पानी फिर रहा है। करोड़ों की लागत से लगाए गए पौधे और बरसात की प्राकृतिक हरियाली, दोनों ही चरवाहों के झुंड की भेंट चढ़ रहे हैं।
बड़ा सवाल
जब कानून स्पष्ट है, सबूत मौजूद हैं और ग्रामीण परेशान हैं, तब भी विभाग हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठा है? क्या यह महज लापरवाही है या सुनियोजित मिलीभगत? यह सवाल अब सिर्फ ग्रामीणों का नहीं, बल्कि पूरे समाज का है।
अगर तुरंत कार्रवाई नहीं हुई तो जडगा रेंज का जंगल बंजर होने में देर नहीं लगेगी