
सारंगढ़-बिलाईगढ़। नया जिला बने सारंगढ़-बिलाईगढ़ को तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब तक यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक परंपराओं को संरक्षित करने के ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं। इसी बीच, जिले की पहचान बने सारंगढ़ दशहरा को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने और सांस्कृतिक धरोहर को नई ऊँचाई देने के लिए “सारंग महोत्सव” आयोजित करने की माँग तेज हो गई है।
सारंगढ़ दशहरा अपनी अनूठी परंपरा और गणविच्छेदन की ऐतिहासिक विशेषता के कारण देशभर में अलग पहचान रखता है। प्रस्ताव है कि इसे अष्टमी, नवमी और दशमी को मिलाकर तीन दिवसीय महोत्सव का रूप दिया जाए, जिसमें कला, संस्कृति, साहित्य, खेल और पर्यटन की विविध झलक शामिल हो।
महोत्सव में कोसा साड़ी, ढोकरा शिल्प की प्रदर्शनी, गोमर्डा अभ्यारण्य, महानदी के तट, बटरफ्लाई पार्क जैसे प्राकृतिक स्थलों का प्रदर्शन भी जोड़ा जाए, जिससे स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों को मंच मिल सके।
जैसे रायगढ़ का “चक्रधर समारोह” राष्ट्रीय पहचान बना चुका है, उसी तर्ज पर सारंगढ़-बिलाईगढ़ भी “सारंग महोत्सव” के जरिए प्रदेश और देश के सांस्कृतिक नक्शे पर चमक सकता है।
नवरात्र की आस्था, नवाखाई का उल्लास और गढ़-दशहरा की परंपरा—इन तीनों आयोजनों को जोड़कर यदि “सारंग महोत्सव” मनाया जाए तो यह न सिर्फ जिले की सांस्कृतिक धरोहर को संजोएगा, बल्कि पर्यटन और रोजगार के अवसर भी बढ़ाएगा।
अब निगाहें राज्य सरकार और जिला प्रशासन पर टिकी हैं कि वे इस मांग को किस रूप में आगे बढ़ाते हैं।