
कोरबा/कटघोरा।
जिला कोरबा के ग्राम जटगा सहित आसपास के क्षेत्रों में आदिवासियों की पैतृक जमीन को गैर-आदिवासी वर्ग द्वारा हड़पने का मामला गंभीर रूप लेता जा रहा है। राजस्व अभिलेखों में छेड़छाड़, जालसाजी और फर्जी नामांतरण कर आदिवासियों की पुश्तैनी जमीन पर कब्ज़ा किया जा रहा है।
आदिवासी समुदाय का आरोप है कि यह सारा खेल तहसील स्तर से ही संचालित हो रहा है। तहसीलदार और निचले स्तर के कर्मचारी राजस्व रिकॉर्ड में हेरफेर कर गैर-आदिवासी प्रभावशाली लोगों के नाम पर जमीन दर्ज कर रहे हैं। जबकि संविधान और छत्तीसगढ़ भूमि राजस्व संहिता के तहत आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासी के नाम पर स्थानांतरित करना पूर्णतः प्रतिबंधित है।
ग्राम जटगा के कई पीड़ित आदिवासी परिवारों का कहना है कि उन्होंने बार-बार शिकायत की, कलेक्टर और एसडीएम तक गुहार लगाई, लेकिन कार्यवाही करने के बजाय अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। पीड़ितों का आरोप है कि तहसीलदार और पटवारी जैसे अधिकारी, गैर-आदिवासी भूमाफियाओं से सांठगांठ कर मोटी रकम लेकर आदिवासियों की जमीन को उनकी सहमति और जानकारी के बिना बंटवारा कर फर्जी नामांतरण करवा रहे हैं।
इस पूरे खेल से साफ है कि स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत के बिना इतने बड़े पैमाने पर जमीन की लूट संभव नहीं है। आदिवासी समाज अब एकजुट होकर आंदोलन की तैयारी में है। उनका कहना है कि यदि जल्द ही निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो वे कलेक्टर कार्यालय का घेराव करेंगे।
यह मामला न केवल आदिवासी अधिकारों का हनन है, बल्कि शासन-प्रशासन की संवेदनहीनता और भ्रष्टाचार को भी उजागर करता है। अब देखना यह होगा कि कलेक्टर और सरकार इस गंभीर मुद्दे पर कब और कैसी ठोस कार्रवाई करते हैं।