
छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ कही जाने वाली मितानिन आशा कार्यकर्ता, प्रशिक्षक, हेल्थ फैसिलिटेटर और ब्लॉक समन्वक अब अपने भविष्य को लेकर उग्र आंदोलन की राह पकड़ चुकी हैं।
आज दिनांक 19 अगस्त 2025, मंगलवार को घंटाघर चौक से दोपहर 12 बजे लगभग 2250 की भारी संख्या में उपस्थित मितानिनों ने रैली निकालते हुए जिला कलेक्टर को अपनी तीन सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा।
दरअसल, संगठन द्वारा पूर्व में भी 29 जुलाई को रायपुर तूता मैदान में प्रदेश स्तरीय धरना देकर मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव सहाय को ज्ञापन सौंपा गया था, जिसमें उचित निराकरण के लिए 8 दिनों का समय मांगा गया। लेकिन सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
सवाल उठता है कि आखिर क्यों?
क्या सरकार चुनावी घोषणाओं और मोदी की गारंटी को अब मात्र जुमला साबित करने पर आमादा है?
प्रदेश संगठन का आरोप है कि मितानिन जैसे समर्पित और जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले कार्यकर्ताओं को “कम पढ़ा-लिखा” समझकर फिर से 2002 की ठेका पद्धति लागू की जा रही है और दिल्ली के एनजीओ को काम सौंपने की तैयारी है।
यही कारण है कि 7 अगस्त से लगातार 13 दिनों तक रायपुर के धरना स्थल तूता में संभागवार मितानिनें बारी-बारी से शामिल हो रही हैं। कोरबा जिले की सहभागिता विशेष रूप से 9 अगस्त रक्षाबंधन के दिन दर्ज की गई, जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “मितानिन पाती” नामक पत्र भेजकर ध्यान आकर्षित किया।
लेकिन नतीजा— सन्नाटा और अनसुनी।
आज मजबूरन कोरबा में मितानिनों ने अपनी ताकत का एहसास कराते हुए चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही उनकी तीन सूत्रीय मांगों का समाधान नहीं हुआ तो प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था ठप पड़ सकती है।
गांव-गांव, मोहल्लों और दूरस्थ अंचलों में स्वास्थ्य सेवाओं का पहला सहारा मानी जाने वाली मितानिनें यदि हड़ताल पर चली जाती हैं तो आने वाले दिनों में लोगों की तबीयत बिगड़ने पर इलाज मिलना मुश्किल हो जाएगा।
अब देखने वाली बात यह है कि सरकार कब तक चुप बैठती है?
क्या वाकई मोदी की गारंटी सिर्फ चुनावी मंच तक सीमित रह जाएगी या फिर इन मितानिन देवियों की पुकार को सुनकर स्थाई समाधान निकलेगा?